अंकुर आज़ाद का मन बचपन से ही फिल्मो की और था, एक माध्यम परिवार में जन्मे अंकुर बचपन में ज्यादातर अपने नानी के यहाँ रहा करते थे क्योकि वहां उन्हें दिन भर फिल्म देखने को मिलता था, जो उनके पैतृक घर में सुबिधाये नहीं मिलती| दिन बीतता गया, नवोदय में पढाई के दौरान वो विद्यालय के सांस्कृतिक कार्यकर्म में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे और यह सिलसिला चलता रहा, नाटकों के प्रति जबरदस्त का लगाव हो गया| खुद से की हुई तैयारी से उन्हें संतोष नहीं आया और अपनी आगे की पढाई के लिए दिल्ली की आ गए| दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी से स्त्रातक के साथ पपेट्स पिक्चर मीडिया एंड इंस्टिट्यूट नॉएडा से फिल्ममेकिंग की पढाई किये| लिखने -पढ़ने के शौक ने इन्हे आगे बढने की प्रेरणा दी ...बिभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कई सारे कविता, ग़ज़ल अब तक प्रकाशित हो गए है |
पढाई के दौरान ही बहुचर्चित बिहार की लोक-कथाओ पर बनी फीचर फिल्म जट-जटिन में सहायक निर्देशक का कार्य किया उसके पश्चात वेब सीरीज में बतौर लेखक सह निदेशक काम कर रहे हैं |अगवा लघु फिल्म उसी वेब सीरीज का हिस्सा है |